पांच वर्षोंमें क्या बदला? : हर हिंदुको यह समजना होगा.

पांच वर्षोंमें क्या बदला?


ॐ नमो नारायण.

अभी लोक सभा के चुनाव का मौसम पूरी तरह से छाया हुआ है. हर प्रकार के आक्षेप प्रति आक्षेप हो रहे हैं. जनता के सामने जैसे एक विराट मंथन प्रारम्भ हो गया है. अमृत तो निकलते निकलेगा अभी तो चारों ओर विष के छींटे उड़ रहे है. टेलीविज़न और इंटरनेट की दुनियामें चर्चाएं चल रही है. सबको विकास की और अर्थ व्यवस्था की चिंता है. अच्छी बात है. हमारा देश अधिक से अधिक विकसित  होना ही चाहिए. स्वतंत्रता के बाद हमारा राष्ट्र विभिन्न परिस्थितियों में से गुजरते हुए अवकाश विजयी हुआ है. हमे गर्व है. लेकिन पिछले पांच सालों में कुछ ऐसा भी हुआ है जो पहले हमने कभी नहीं सोचा था.  जिसका हमें अहसास तक नहीं  था.

हम हिंदुओंकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि हमें हमारे इतिहास में कोई विशेष रूचि नहीं है. जो हो गया सो हो गया. दूर का इतिहास तो छोड़िये, कुछ साल पहले की बात भी हमें याद नहीं रहती.

१३ सितम्बर २००७ के ध  टाइम्स ऑफ़ इंडिया में पत्रकार धनञ्जय महापात्र की एक रिपोर्ट छपी है जिसमे कहा गया है कि तत्कालीन भारत सरकार द्वारा  सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दाखिल किया गया है कि  बेशक वाल्मीकि कृत रामायण और तुलसीदास कृत राम चरित मानस हमारे प्राचीन साहित्यकी उत्कृष्ट रचनाएँ है पर उसमे दर्शाये गए प्रसंग तथा पात्र काल्पनिक है.  सुज्ञ पाठकों के लिए मैं यहाँ पर लिंक साझा कर रहा हूँ.

https://timesofindia.indiatimes.com/india/No-historical-proof-of-Ram-Centre-tells-SC/articleshow/2363595.cms

इसके बाद राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद् एवं भारतीय जनता पक्ष आदि संस्थाओं द्वारा उसका विरोध हुआ लेकिन कितने हिन्दू सडकों पर उतर आये? जिस कांग्रेस पक्ष के अगवाई में UPA सरकार चली उस कांग्रेस पक्षने मात्र राम ही नहीं किन्तु महात्मा गांधीजी की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े कर दिए. महात्मा गांधीजी के नाम पर वोट मांगने वालों को उनके मुख से निकले अंतिम शब्द "हे राम" पर भी विश्वास नहीं है क्या? राजघाट पर जाकर माथा टेककर  टीवी पर अपने आपको अहिंसावादी बताने वाले नेताओं ने कभी वहां अंकित किये गए "हे राम" को नहीं पढ़ा क्या? यदि इतना ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिखाना चाहते हो तो  कभी कश्मीर में  हज़रतबल  दरगाह में रहे बाल की सत्यता पर प्रश्न क्यों  नहीं उठाया जाता?  क्या किसी बुद्धिमान कांग्रेसी नेताने बाइबल में दर्शायी गई घटनाओं पर प्रश्न किया? अमेरिका जैसे मूड़ीवादी, भौतिक विचारधारा और वैज्ञानिक अभिगम रखने वाले देश में भी कभी किसी राजकीय नेता ने यह प्रश्न नहीं किया कि अब्राहम, नूह, मोज़ेस या जीसस के होने का क्या प्रमाण है?

यह बातें मैं आपके सामने इस लिए रख रहा हूँ कि आपकी समझ  में पिछले पांच साल में क्या हुआ यह स्पष्ट हो. सके.

आन्तर राष्ट्रीय  योग दिवस :

दिनांक २६ मई २०१४ के दिन श्री नरेंद्र मोदीजी ने भारत के प्रधान मंत्री के रूप में शपथ ली और कार्यभार संभाला. उसके चार महीने बाद दिनांक २७ सितम्बर २०१४ को यूनाइटेड नेशन्स की सामान्य सभा को सम्बोधित करते हुए उन्होंने आन्तर राष्ट्रीय येग दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा. इसके लिए उनहोंने दिनांक भी सूचित किया ११ जून जोकि पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध  का सबसे लम्बा दिवस है.  ११ दिसंबर २०१४  को अर्थात तकरीबन ढाई महीनेमें संयुक्त राष्ट्र संघ  (UNO ) की सामान्य सभामें भारत के स्थायी प्रतिनिधि अशोक मुखर्जीने  यह प्रस्ताव  रखा और १७७ राष्ट्रोँने इस प्रस्तावका समर्थन किया इतना ही नहीं इसके सह प्रायोजक बने. यूनाइटेड नेशंस के इतिहास में इस प्रकारके किसी भी प्रस्ताव के साथ एक साथ इतने राष्ट्र जुड़े हो  ऐसी यह प्रथम घटना है.

स्वतंत्रता के बाद हमने ना ही हमारी शिक्षा पद्धति में कोई बदलाव किया है ना ही हमारे किसी नेताने हमारी किसी भी ज्ञान विज्ञान शाखा को वैश्विक रूप से सन्मान दिलाने का प्रयास किया है. वास्तवमे देखा जाय तो यह घटना इतनी बड़ी है की जिसका सामान्य रूप से आप संदाजा नहीं लगा सकते. २१ जून को हमारे यहाँ  विश्व योग दिवस बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है किन्तु इसके पीछे कितनी बड़ी उपलब्धि रही है इसका किसीको अंदाजा भी नहीं होता.

किसी भी राष्ट्र की सांस्कृतिक विरासत को जब वैश्विक मान्यता प्राप्त होती है तब स्वाभाविक रूप से उस राष्ट्र को विश्व में विशिष्ट सन्मान प्राप्त होता है. अंग्रेज़ोंने हमारा आत्मसन्मान छीननेमें कोई कसार नहीं छोड़ी. स्वतंत्रता के बाद यह कदाचित प्रथम ऐसा अवसर है की किसी प्रधान मंत्री के सन्निष्ठ प्रयासों ने हमारी सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक मान्यता प्राप्त करवाई है.

प्राचीन भारतमें विज्ञानं  :

बरसों से कुछ विद्वानों द्वारा दबे शब्दोंमे कही जाने वाली बातों   को  पिछले पांच वर्षोंमें खुला आकाश मिला है. २०१५मे इंडियन साइंस कोंग्रेसमें पहेली बार हमारे प्राचीन ग्रंथोंमें दर्शाये गए विमानों पर शोध पात्र प्रस्तुत करनेकी अनुमति मिली. प्राचीन भारतमें आजसे भी अधिक उन्नत क्षमता वाले विमान थे इस विषय पर आनंद जे. बोडास और अमेय जाधव ने शोध पत्र प्रस्तुत किया. हमारे यहाँ विमान बनाने की तकनीक हजारों वर्ष पूर्व भी विद्यमान थी.  रामायण और महाभारत में विमानों का उल्लेख हम सदियों से सुनते पढ़ते आये थे लेकिन अंग्रेजोंने हमारे इतिहास को दन्त कथा बना दिया क्यूंकि वो एक नव विकसित  प्रजा है.  उनकी सोच में मानवतावादी संस्कृति नहीं है. उनकी समृद्धि एशिया और अफ्रीका में चलायी हुई लूट का परिणाम है. लेकिन दुर्भाग्य से स्वतंत्रता के बाद भी हमने उन्ही  के द्वारा लागु की गई   शिक्षा पद्धति का अनुकरण और अनुसरण किया. इसका सबसे दयनीय उदाहरण तो यह है की जब हमारे वैज्ञानिकों ने प्राचीन भारत के ग्रंथों में छिपे विज्ञान को तलाशने की बात की और उसके लिए संवाद सत्र का आयोजन  किया तब  हमारे ही कई वैज्ञानिकों ने  यह कहकर विरोध किया कि इस प्रकार की चेष्टा से विज्ञान के क्षेत्रमे भारत की छवि धूमिल हो जायेगी. पश्चिमी विचारधारा के  दास इन अंधों को यह नहीं दिखाई देता कि  उसी पश्चिम में चीनी और जापानी मान्यताओं का सन्मान होता है. यदि  हम स्वयं अपना सन्मान नहीं कर सकते तो दूसरा हमें सन्मान नहीं देगा.  पिछले पांच वर्षों में इस प्रकार के संशोधनों को वेग मिला है, वातावरण मिला है. आज अगस्त्य संहितामे बताये गए बैटरी   के निर्माण की विधा की चर्चा होने लगी है. २०१७में काव्या वाडाड़ी नामकी एक एयरक्राफ्ट डिज़ाइन इंजीनियर ने  हमारे प्राचीन ग्रंथों के आधार पर विमान का एक 3D  मॉडलका डिज़ाइन  बनाकर अमेरिकाके एयरोस्पेस सिस्टम इंजीनियर ट्रेविस टेलर को भेजा. जिसका 3 D प्रिंट निकालकर ट्रेविस टेलर ने  प्रयोगशाला में  एक विंड टनल में एयरोडायनामिक  क्षमताकी जांच की.  गयी तो उसकी एयरोडायनामिक क्षमता सौ प्रतिशत सिद्ध हुई. यह प्रयोग का  वीडियो मैंने एक  विदेशी  टेलीविज़न  कार्यक्रम में देखा था जिस पर भारत सररकार का कोई दबाव संभव नहीं था.

यदि हम वास्तवमें हमारा  और हमारे राष्ट्र का  विकास चाहते हैं तो ये बातें बहुत ही अहमियत रखती है. आज हम चुनाव के कोलाहल में इन सब बातों को भुला बैठे हैं जिसकी अहमियत किसी भी  विकास विकास योजना से कम  नहीं है.  हम भारतीय हैं  और हमें हमारी बुद्धिमत्ता के लिए किसी  विदेशी  राष्ट्र के प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं है. पिछले पांच वर्षोंमें हमारे पूर्वजों द्वारा संचित ज्ञान निधिका वास्तविक रूपमे वैश्विक आकलन और स्वीकृति प्रारम्भ हुई है. 

इतिहास का  पुनर्विचार :

स्वतंत्रताके बाद हम हमारे देश का  इतिहास पढ़ते रहे जो अंग्रेज़ों ने बनाया था जिसमे हमारे गौरवको धूमिल करनेकी पूरी कोशिश की गयी थी.  जिसे अपनाके अपने आपको मॉडर्न माननेवाले  वाले लोग   गौरवान्वित महसूस करते  हैं वह अग्रेंज़ी सभ्यता वास्तवमें  पांच छे शताब्दी पुरानी  है.  उनकी  भाषा और व्याकरण  हमारी  भाषाओं जितना विकसीत  नहीं है. वह कई शब्दों का योग्य उच्चारण नहीं कर सकते. आपमेसे  कई लोग यह नहीं जानते होंगे कि  पन्दहवीं से अट्ठारहवीं शताब्दी के बीचमे यूरोप और अमेरिका तथा आफ्रिका सहित जहाँ जहाँ यूरोपीय देशोंका शासन था वहां डायन या चुड़ैल होनेके शक मात्र पर लाखों औरतोंको मार डाला गया था. उनमेसे अधिकतर औरतोंको जिन्दा जलाया गया था.  ये प्रजा इतनी बर्बर और अन्धविश्वास में जीने वाली थी. क्रूरता और स्वार्थ इनकी आनुवंशिकता है. लेकिन  १९० साल शासन करनेके बाद उन्होंने हमें वह शिक्षा पद्धति दी कि हम अपने आपको पिछड़ा और जाहिल समझने लगे. पिछले पांच सालोंमें  में  हमारी भव्यताकी बातों को खुलके उजागर करनेकी एक मुहिम  प्रारम्भ हुई है. हॉलीवुड की फिल्मों के शौक़ीन दर्शकों ने कभी भी पश्चिम की बर्बरता और पिछड़ेपन का सत्य नहीं देखा होगा. क्यूंकि वहां पर फिल्म बनानेवाले और न्यूज़ दिखानेवाले इस बात से बहुत सतर्क है कि उनकी सभ्यताको निचा दिखने वाली बात दुनियामे नहीं कहीं भी नहीं दिखानी चाहिए. लेकिन हमारे यहाँ हमारा गौरव हनन करनेमें  फिल्मवालों को और न्यूज़ वालों को मज़ा आता है क्यूंकि हमारे दर्शक जागरूक नहीं है. किसीभी प्रकारके कलाकारका  एक नैतिक उत्तरदायित्व्य होता है, जवाबदेही होती है. अगर यह वह नहीं  समजे तो दर्शकों को उसे अपनी कठोर प्रतिक्रियासे समझा  देना चाहिए.

२०१२मे  कोन्ग्रेस्स के बहोत ही वरिष्ठ नेता  दिग्विजय सिंह कोमवाद का ज़हर फैलानेवाले , हिन्दू धर्म  और देवी देवताओंके विषयमें आपत्तिजनक बात करने वाले डॉक्टर ज़ाकिर नाइक के कार्यक्रममें भाग लेने गए इतनाही नहीं पर उस उग्रवादी विचारधाराके मुस्लिम नेताको शांति दूत भी बता दिया. उस ज़ाकिर नाइक का नाम  बांग्लादेशमे आतंकवादी गतिविधि भडकनेमें भी आ चूका है.  हजारोंकी भीड़ के सामने वो धड़ल्ले से  हिन्दू देवी देवताओं के विषयमे अति आपत्ति जनक टिप्पणियां कर चूका है.. ऐसे नराधमको मोदी सरकार के आने के बाद देशसे बहार खदेड़ा गया है. जबतक मोदी राज है उसकी हिम्मत नहीं है भारत वर्ष में पैर  रखने की.

मुस्लिम शासकों ने और अंग्रेज़  हुक्मरानोने हमारे इतिहास को बहुत गलत तरीकेसे प्रस्तुत किया है. एक बार मेरे आश्रममे मेरे कुछ रशियन  शिष्य आये हुए थे और सत्संग चल रहा था. उनको हमारे इतिहास में बहुत रूचि होती है. बात बात में मैंने उनसे पूछा कि  आप अलेक्ज़ैंडर  यानि सिकंदर के भारत पर आक्रमण के बारे में क्या जानते हो? मेरे सामने बैठे उन आठ दस शिष्यों ने एक ही बात बतायी कि  सिकंदर भारतमे हार गया था. यह बात कहने वाले वो तमाम विदेशी अलग अलग आयु के थे. लेकिन उनका जवाब एक ही था. अब मैं सोच में पड़  गया क्योंकि हमें स्कुल के इतिहासमे पढ़ाया जाता है कि  महाराजा पोरस सिकंदर के सामने हार गए थे लेकिन उनकी वीरता और गौरवकी सराहना करते हुए सिकन्दरने उनको उनका राज्य वापस दे दिया था.  मैंने मेरे उन विदेशी शिष्यों से पूछा कि  आपको ये किसने बताया कि  सिकंदर भारतमें हार गया था? उन्होंने कहा कि  यह बात तो हम हमारे यहाँ इतिहास की किताबोंमे पढ़ते है.   इस चर्चा के बाद मैंने हॉलीवुड में   सन  २००४में बनी  अलेक्जांडर नामकी फिल्म देखी  उसमें भी  यही दृश्य बताया गया था कि सिकंदर भारत पर आक्रमण  के दौरान बुरी तरह से घायल होकर घोड़े से गिर गया था और उसे बड़ी मुश्किल से युद्ध के मैदानसे दूर ले जाय गया था.  इसके पश्चात मैंने अलग अलग जगहसे इस घटनाके विषयमे जानकारी प्राप्त करनेका प्रयास किया. तो एक यूरोपीय इतिहासकरने यहाँ तक वर्णन किया था की घायल सिकंदर जब अपने घोड़े पर से जमीन पर पड़ा तब उसने देखा कि तकरीबन सात फुट ऊँचे महाराजा पोरस उसके सामने अपना बड़ा भला लेकर खड़े थे.  उस क्षण सिकंदर को अपना अंत निश्चित लगा. लेकिन महाराजा पोरसने भारतीय परंपरा और निति नियमों का पालन करते हुए निहत्थे , धराशायी और घायल शत्रु पर वार नहीं किया और उसे जाने दिया. अंग्रेजोंने हमारे इतिहास के साथ ऐसे कई खिलवाड़ किये हैं. वास्तवमें अंग्रेजोंकी नियत और नैतिकता जल दस्युओं (पायरेट्स) जैसी थी.  ये सारी बातें  इस लिए बता रहा हूँ कि  इन पांच सलोंमें मैंने हमारे इतिहास पर पुनर्विचार और पुनः आलेखन करनेकी इच्छा मोदी सरकार में देखि है.

हिन्दुत्व :

स्वतंत्रताके बाद जिस प्रकारके धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रको प्रस्थापित करनेका प्रयास हुआ उसमें एक बात स्पष्ट थी कि  यदि आप मुसलमान या ईसाई  है तो सरकार आपकी धार्मिक भावनाओंका ध्यान रखेगी.  लेकिन यदि आप हिन्दु  हैं तो उस आधार पर आपको कोई विशेष लाभ नहीं मिल सकता. बल्कि वास्तविकता यह है कि  धर्मनिरपेक्षता   या समाजवाद का अर्थ मात्र और मात्र मुस्लिम समुदाय का तुष्टिकरण ही रह गया था. पूरी दुनिया ये जानती है और कहती है की भारत वर्ष पर इस्लामिक आक्रमण हुए लेकिन इतिहास की इस सच्चाई को भी हम नहीं बोल सकते, यदि हम इस इतिहास के विषयमें खुलकर स्पष्ट शब्दोंमे बात करें तो हमें कोमवादी करार दिया जायेगा. आज से पांच वर्ष पूर्व भारतीय जनता पक्ष को छोड़कर बाकी किसी भी पक्षके नेताको आपने कभी तिलक या त्रिपुण्ड्र धारण किये हुए देखा है? दरगाहों पर चादर चढाने वाले, ईद और इफ्तार की पार्टिओं का आयोजन करने वाले हिन्दू माता पिता के संतान कभी आपको मंदिर जाते दिखे? अवश्य ही जाते होंगे लेकिन किसी तरह इस बात को गोपनीय रखा जाता था. सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि एक आक्रांता ने हिन्दू धर्मकी आस्था के केंद्र ऐसे अयोध्या के श्री राम जन्म भूमि मंदिर को तोड़कर अपनी दरिन्दगी का स्मारक खड़ा किया.  भारतकी स्वतंत्रताके बाद गुलामी के प्रतिक रूप इस स्मारक को हटा लेना चाहिएथा लेकिन यह संभव नहीं था. न्यायालयों में यह मुकद्दमा दशकों तक चलता रहा और लम्बे समय तक ठन्डे बस्ते में  डाल  कर रखा गया.  जब विश्व हिन्दू परिषद्, राष्ट्रिय स्वयं संघ और भारतीय जनता पक्ष ने हिंदुओंकी आस्थाको बुलंद स्वरमें कहना आरम्भ किया तो उन्हें कोमवादी और विभाजनवादी घोषित किया गया. कुल मिलकर इस देश में ऐसा माहौल बन चूका था कि  अगर आप हिन्दू हैं तो भारत वर्षमें आपकी कोई खास अहमियत नहीं है. यह परिस्थिति पिछले पांच वर्षोंमें बदली. पिछली पांच वर्षोंमें अचानक कोंग्रेसके नेताओंको याद आया कि वह भी हिन्दू है.  क्यूंकि भारतको सबसे पहला ऐसा प्रधान मंत्री मिला जो नवरात्रिमें उपवास रखता है. जो शिवजी का भक्त है. जो मंदिरोंमें दर्शन करने जाता है. एक प्रकारसे देखा जाय तो श्री मोदीजी विपक्षी नेताओंके आध्यात्मिक गुरु बन गए क्योंकि उन्हींको देखकर विपक्षी नेताओं ने मंदिर मंदिर जाना आरम्भ किया. श्री योगेश्वर चैतन्य पहले कभी नहीं दिखता था वो अब दिखने लगा है - कांग्रेस के नेताओं के माथे पर तिलक और त्रिपुण्ड्र.  पिछले पांच वर्षोंमें अन्य सभी राजकीय पक्षों को यह अहसास हुआ कि  हिन्दू भी वोट देते हैं. 

हम इस विश्वकी प्राचीनतम सभ्यता हैं. हजार वर्षोंके आक्रमणों ने हमें गहरे घाव दिए हैं. लेकिन हमें इन घावों को भरना है और अपनी पूरी शक्ति के साथ जगतके मंच पर अपना गौरव प्रस्थापित करना है. आवश्यकता है हमारी चेतना को जागृत करनेकी. यदि आर्थिक रूप से भी हमें पूर्ण समृद्ध होना है तो हमारे अंदर रहा हिंदुत्व जागृत करना होगा.  जब इस जगतके अन्य देश जंगलोंमें और झोंपड़ियोंमें  रहते थे तब हमारे पूर्वज भव्य प्रासाद का निर्माण करते थे.  दुनिया की अधिकतर भाषाएँ संस्कृतमें से पैदा हुई है. दयनीय स्थिति यह है कि हमारे ही देश के कुछ लोग आज भी आर्योंको आक्रांता साबित करने पर तुले हैं. जबकि यह सिद्ध हो चूका है कि  आर्य प्रजा भारत वर्ष से बाकी विश्वमें फैली है. सबसे खतरनाक घटना जो अब हो रही है वह अनापशनाप भाषण देकर दलितोंको हिन्दुओं से अलग करनेवाले दुर्बुद्धी  नेताओं का उदय. अपनी बद्जुबानीसे वे अपने ही समाजको मुख्य धरमें आते हुए रोकनेका प्रयास कर रहे हैं. ऐसे समयमें  राष्ट्रका नेतृत्व किसी शक्तिशाली नेतके हाथमें रहे जो हिन्दुओं को एकजुट रख सके वह अति आवश्यक है.

कोई भी प्रजा वास्तविक विकास तभी कर सकती है जब उसे अपने विषय में ज्ञान हो. देशमें चाहे कितनी भी आर्थिक उन्नति दिखे लेकिन यदि हमारे अंदर हमारे हिन्दू होनेका  पूर्ण अहसास और गौरव नहीं होगा तो हमारा पतन किसी भी समय हो सकता है. जब तक इस राष्ट्रमें सनातन धर्मकी पताकाएं लहराती रही तब तक हम इस विश्वकी महा सत्ता बने रहे. वर्त्तमान समयमें इज़राइल  इस बात का बहुत बड़ा प्रमाण है. इज़राइल के हर बाशिंदेको इस बातका गर्व है कि  वो यहूदी है. यही उनकी सबसे बड़ी शक्ति है.  जब हर हिन्दू यह सोचेगा कि  मुझे हिंदुओंके हितमें काम करना है तो यह राष्ट्र अपने आप प्रगतिकी राह पर दौड़ने लगेगा. अभी तक हमारी प्रजा एक प्रकारकी आइडेंटिटी क्राइसिस में से गुज़री है. पिछले पांच सालमें हमारे सामने हमारी वास्तविकताएं आने लगी है.  याद रहे, इंसान का मानस वहीँ जुड़ा रहता है जहाँ उसकी आस्था का स्त्रोत होता है. अपने आपको समर्पित भारतीय बताने वाले अन्य मज़हब के लोग कितना भी कर लो श्री राम जन्मभूमि, श्री कृष्ण जन्मभूमि या काशी को उतना महत्त्व नहीं दे पाएंगे  जितना मक्का और मदिनाको  देते हैं.  ये लोग बहुत आसानी से हमारे देवी देवताओं पर प्रश्न कर सकते हैं लेकिन उनके मज़हब के विषयमें कुछ भी बोलना मन है. ज़ाकिर नाइक जैसे नीच इन्सानकी सभामें शिरकत करनेवाले हजारों लोंगोंमेंसे एक भी ऐसा नहीं निकला जो मंच पर जाकर उसे एक तमाचा मारकर चुप करवाए.  यदि मोदी शासन नहीं आता तो ज़ाकिर नाइक आज भी सरेआम अपनी नीचता का प्रदर्शन करते रहता. इस विश्वके इतिहासमें हिंदुओंने कभीभी  किसीके धर्म परिवर्तनके लिए युद्ध नहीं किया जबकि पिछले पंद्रहसौ सालमें इतिहासने ख्रिस्तिओं के क्रूसेड और मुसलमानों के जेहादी युद्धों को और उसके बाद धर्म परिवर्तन करनेके लिए की गयी बर्बरताको देखा है.

पिछले पांच वर्षमें  चाहे कोई भी समस्याएं आयी हो, हिन्दू स्वमान वापस जागृत हुआ है यह मत भूलना. सबसे पहले पूर्ण हिन्दू बनो, अपनी महान  विरासतको पहचानो और अपने हिन्दू समाज की उन्नतिके लिए कार्यरत हो जाओ. यह राष्ट्र बहुत ही जल्द महा सत्ता के रूपमें प्रस्थापित होगा इसमें संशय नहीं है. 

श्रीयोगेश्वर चैतन्य
shriyogeshvara@gmail.com

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