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पांच वर्षोंमें क्या बदला? : हर हिंदुको यह समजना होगा.

पांच वर्षोंमें क्या बदला? ॐ नमो नारायण. अभी लोक सभा के चुनाव का मौसम पूरी तरह से छाया हुआ है. हर प्रकार के आक्षेप प्रति आक्षेप हो रहे हैं. जनता के सामने जैसे एक विराट मंथन प्रारम्भ हो गया है. अमृत तो निकलते निकलेगा अभी तो चारों ओर विष के छींटे उड़ रहे है. टेलीविज़न और इंटरनेट की दुनियामें चर्चाएं चल रही है. सबको विकास की और अर्थ व्यवस्था की चिंता है. अच्छी बात है. हमारा देश अधिक से अधिक विकसित  होना ही चाहिए. स्वतंत्रता के बाद हमारा राष्ट्र विभिन्न परिस्थितियों में से गुजरते हुए अवकाश विजयी हुआ है. हमे गर्व है. लेकिन पिछले पांच सालों में कुछ ऐसा भी हुआ है जो पहले हमने कभी नहीं सोचा था.  जिसका हमें अहसास तक नहीं  था. हम हिंदुओंकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि हमें हमारे इतिहास में कोई विशेष रूचि नहीं है. जो हो गया सो हो गया. दूर का इतिहास तो छोड़िये, कुछ साल पहले की बात भी हमें याद नहीं रहती. १३ सितम्बर २००७ के ध  टाइम्स ऑफ़ इंडिया में पत्रकार धनञ्जय महापात्र की एक रिपोर्ट छपी है जिसमे कहा गया है कि तत्कालीन भारत सरकार द्वारा  सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दाखिल किया गया है कि  बे